मुसाफिर कैफ़े : सपनों की उड़ान है दिव्य प्रकाश दूबे की किताब


मुसाफिर कैफ़े नाम से ही लगता है, कि खानाबदोशों के लिए ही बनाया होगा|
 लेकिन चलते फिरते लोग जो आज यहाँ कल कही और उनके लिए कैफ़े जरुरी थी क्या? मुसाफिर कैफ़े!
हाँ, मुसाफिर कैफ़े घुमक्कड़ लोगो के लिए छत थी लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ और थी|
चंदर एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर, सपनो के शहर मुंबई में लाखों की नौकरी से भागना चाहता था, वही उसकी माँ शादी के लिए उसको हर रविवार नयी लड़की के साथ डेट फिक्स करने में जुटी थी| लेकिन चंदर अपने पहले प्यार से इतना दुखी था की शादी में उलझना नहीं चाहता था| इसी दौरान उसकी मुलाक़ात उसके ख्यालों से मिलती जुलती सुधा से हुआ| हालाँकि सुधा और उसके 'शादी ना करने' के विचार ही मिले थे| बाकि सुधा में शरीफ लड़की से परे सारे ऐब थे| पेशे से  वकील वो भी 'तलाक' वाले मामले की
लेकिन 2 बार के इश्क़ के मरीज़ चंदर को फिर से सच्चा वाला प्यार हो जाता है| सुधा के साथ लिव इन भी हो जाता है लेकिन सुधा शादी के लिए तैयार नहीं होती| हालाँकि प्यार की खातिर हनीमून भी कर आती है
आखिर चंदर माँ को मन करते करते थक कर दूर जाना चाहता है

सुधा की मेडिकल रिपोर्ट में आता है की वो प्रेग्नेंट है लेकिन फिर भी वो शादी को तैयार नही होती| चिंता और सुधा की जिद से परेशान चंदर नौकरी छोड़ पहली ट्रेन से हरिद्वार फिर मसूरी पहुच जाता है| महीने की तपस्या (किताबें और आत्म मंथन) के दौरान उसकी मुलाक़ात पम्मी से होती है जो अपने सपनो के लिए 10 सैलून से जमीन तलाश रही है| पम्मी को कैफ़े के लिए रुपयों की जरुरत थी और चंदर को पम्मी के सपनो में अपना वर्षो का ख्वाब दोनों ने मिलकर कैफ़े शुरू किया"मुसाफिर कैफ़े"|

सुधा, जो अपने और चंदर के बच्चे को अकेले बड़ा कर रही थी जिसके लिए उसने वर्षो पहले चंदर से झूठ बोला था | और जब उसके दाखिले के लिए भारत के प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल में जाती है तो उसका मन 'चंदर' से मिलने को होता है|
वो "मुसाफिर कैफ़े" जाती है और फिर चंदर, सुधा एक हो जाते हैं| पम्मी उनकी अच्छी दोस्त से बढकर हमेशा साथ रहती है| चंदर कैफ़े में किताबों के बीच बच्चो को कहानियां सुनाता है और पम्मी कैफ़े |

समीक्षा: 

दिव्या प्रकाश दूबे जी ने मुसाफिर कैफ़े के माध्यम स उन लोगो के सपनो को एक उड़ान देने कोशिश की है | कहानी में आप मुंबई की रात, हरिद्वार में कुछ दिन और फिर मसूरी से अच्छी तरह से वाकिफ हो जायेंगे| 
कहानी महत्वाकांक्षी  "चन्दर" और बेफिक्र सुधा की है| जो अपनी ज़िंदगी को अपने तरीके से जीते है, हालाँकि इसके लिए उन्हें रहें बदलनी पड़ती है और अंत साथ हो जाते है|

कहानी बहुत ही उतार चढ़ाव के साथ बाँधे रखने में सफल रहती है| कहानी में आपको कही भी बोरियत महसूस नहीं होगी | दूबे जी की कहानी कौशल बेजोड़ है | एक बार जरूर पढ़िए!


Review: 5/5








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